What Does वैष्णव धर्म Mean?
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ब्राह्मण धर्म के प्रतिपादक ग्रन्थों (पुराणों, स्मृतियों एवं उपनिषदों) में नारायण की विशेष चर्चा मिलती है। पुराणों एवं पुराणों से पुरानी उपनिषदों का सर्वेक्षण करने पर यह ज्ञात होता है, कि वासुदेव से भी प्राचीनतर सत्ता नारायण की है। ऋग्वेद में नारायण का उल्लेख मिलता है। श्रीमद्भागवत् में नारायण का उल्लेख आधार पर किया गया है, तथा महाभारत में प्रत्येक पर्व के आरम्भ में नर एवं नारायण की स्तुति की गई है। नारायण नाम से ही नारायणोपनिशद की भी रचना प्राप्त होती है। ये सारे तथ्य इस बात के प्रतीक हैं, कि नारायण पर आश्रित वैष्णव सम्प्रदाय बहुत पुराना है।
वासुदेव अथवा भागवत धर्म की प्राचीनता ईसा-पूर्व पांचवी शती तक जाती है। महर्षि पाणिनी ने भागवत धर्म तथा वासुदेव की पूजा का उल्लेख किया है। उन्होंने वासुदेव के उपासकों को वासुदेवक कहा है। प्रारंभ में मथुरा तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में यह धर्म प्रचलित था। यूनानी राजदूत मेगस्थनीज शूरसेन (मथुरा) के लोगों को हेराक्लीज का उपासक बाताता है, जिससे तात्पर्य कृष्ण से ही है। सिकंदर के समकालीन यूनानी लेखक हमें बताते हैं, कि पोरस की सेना अपने समक्ष हेराक्लीज की मूर्ति रखकर युद्ध करती थी। भागवत धर्म के कृष्ण को सर्वोच्च देवता मानकर उनकी भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति का विधान प्रस्तुत किया गया था। महावीर तथा बुद्ध की ही भाँति वासुदेव कृष्ण को भी अब ऐतिहासिक व्यक्ति माना जा चुका है। वे कृष्ण कबीले के प्रमुख थे। ईस्वी सन् के प्रारंभ होने से पूर्व ही उनकी देवता के रूप में पूजा प्रारंभ हो चुकी थी। गीता में स्वयं कृष्ण ने अपने को वृष्णियों में वासुदेव कहा है।
It enjoined the worship of no other deities except Narayana in the Upanishads, who was deemed the primal reason for srsti (development), sthiti (existence) and pralaya (destruction). The accompanying philosophies of Advaita and Vishishtadvaita introduced the decreased lessons into the fold of sensible Hinduism, and extended to them the ideal and privilege of understanding God and attaining mukti (salvation).[citation wanted]
संस्कृत साहित्य में विष्णु शब्द का बहुत प्रचार देखा जाता है। वेद, उपनिषद, इतिहास, पुराण संहिता और काव्य सभी जगह विष्णु शब्द का विपुल व्यवहार दिखाई पड़ता है। कतिपय विद्वान विष्णु की तुलना वैदिक साहित्य में अनेकशः वर्णित इन्द्र और कुछ विद्वान आदित्य से करते हैं, क्योंकि वे तीन स्थानों में पद धारण करते हैं, जिसमें प्रथम पद पृथ्वी में द्वितीय अंतरिक्ष में एवं तृतीय ध्रुवलोक में है। पृथ्वी पर सभी पदार्थो में अग्नि रूप में अन्तरिक्ष में विद्युत रूप में एवं ध्रुवलोक में अवस्थान के समय रहते हैं। और्णावाभ आर्चाय कहते हैं कि उनका एक पद समारोहण (उदयगिरि) पर दूसरा विष्णु पद पर (मध्य गगन) एवं तीसरा गया सिर (अस्ताचल) पर पड़ा था। और्णावाभ आदि भाष्यकारों ने विष्णु को सूर्य कहा है। तथा कुछ विद्वानों ने सूर्य को ही दूसरे नाम से ऋग्वेद में विष्णु कहा गया है। वाजसनेय संहिता तथा अन्य संहिताओं के प्रकारान्तर से यही बात कही गई है। इस प्रकार आर्यों के काल में ही विष्णु के नाम का उल्लेख इन्द्र, वरूण, रूद्र, सोम और मरूत के साथ प्राप्त होता है।
उत्तर वैदिक काल में वासुदेव का उल्लेख प्राप्त होता है तथा इस काल में उसके सम्प्रदाय का भी उदय हो चुका था। वासुदेव के परम मित्र अर्जुन को देवत्व मिला एवं वासुदेव सम्प्रदाय के अन्तर्गत उसकी भी उपासना होने लगी थी। जिससे वासुदेव के उपासक वासुदेवक तथा अर्जुन के उपासक अर्जुनक कहलाये। इस प्रकार वासुदेव की उपासना प्रारम्भ हो गई जो वैदिक देवता नहीं थे। महाकाव्य काल में ब्रह्मा सृष्टि का सृजन करता और विष्णु सृष्टि का पालन करता तथा इस प्रकार विष्णु जो वैदिक काल में एक गौण देवता थे, उत्तर दैविक काल में उसकी महत्ता इतनी बढ़ गई कि भारतीय आर्यो के वह एक प्रमुख देवता बन गये। इतना प्रमुख देवता कि किसी भी याज्ञिक अथवा वैवाहिक website संस्कारों के समय में विष्णु की प्रतिमा अथवा प्रतीक रखना आवश्यक माना जाने लगा।
ऋग्वेद के बाद सामवेद व अन्य वेदों में विष्णु की स्तुति की गई। इसकी महत्ता इतनी बढ़ गई थी, कि प्रत्येक संस्कार में उसका नाम लिया जाने लगा था। और उसके बिना कोई भी प्रतिस्थापना नहीं होती थी। इन भावनाओं को महाकाव्यों और पुराणों में और भी विकसित किया गया। विष्णु उपासकों के इष्टदेव के रूप उभर कर सामने आए और लोगों ने इष्टदेव की भक्ति और उपासना में ही मुक्ति का मार्ग ढूढ़ा।
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विष्णु के अवतारों की विवेचना
[45] The Chalukyas as well as their rivals of your Pallavas appear to get used Vaishnavism being an assertion of divine kingship, one of them proclaiming by themselves as terrestrial emanations of Vishnu whilst the other promptly adopted Shaivism as their favoured custom, neither of these offering Significantly significance to one other's deity.[forty six] The Sri Vaishnava sampradaya of Ramanuja would hold sway in the south, the Vadakalai denomination subscribing to Vedanta philosophy as well as the Tenkalai adhering to regional liturgies known as Prabandham.[forty seven]
There is no facts out there on demographic history or traits for Vaishnavism or other traditions within just Hinduism.[336]
The 2 Indian epics, the Mahabharata as well as Ramayana current Vaishnava philosophy and tradition embedded in legends and dialogues.[173] The epics are viewed as the fifth Veda in Hindu society.[174] The Ramayana describes the story of Rama, an avatara of Vishnu, and is taken to be a heritage from the 'perfect king', determined by the concepts of dharma, morality and ethics.
(१) श्री सम्प्रदाय जिसकी आद्य प्रवरर्तिका विष्णुपत्नी महालक्ष्मीदेवी और प्रमुख आचार्यरामानुजाचार्य हुए। जो वर्तमान में रामानुजसम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।
बलिर्बिभीषणो भीष्मः